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आग ये कितनी दूर..

आग ये कितनी दूर जली है हमपे ये लौ बरस रही है दूर निगाहों से होकर भी वो आंसू मुझे परोस रही है हिलता नहीं है एक भी पत्ता कोई आंधी तरस रही है सावन आया हर रातों में दुख की घटा गरज रही है..